1.आसमानी बिज़ली के रोचक तथ्य
हर साल 20 से 25 हज़ार लोग आसमानी बिजली गिरने से मारे जाते है। हर सैकेंड 100 बार आसमानी बिजली धरती पर गिरती है।एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार अगर गलोबल वार्मिग इसी तरह से बढ़ती रही तो 21वीं सदी के अंत तक आसमानी बिजली गिरने में 50 प्रतीशत की बढ़ोतरी हो जाएगी।
भले ही आसमानी बिजली और उससे पैदा होने वाली गड़गड़ाहट एक ही समय पर पैदा होते है पर धरती पर बिजली की आवाज़ से पहले बिजली चमकती हुई दिखाई देती है क्योंकि प्रकाश की रफ्तार आवाज़ से कई गुणा ज्यादा होती है। इसके सिवाए बिजली की आवाज़ को तेज़ हवा की कई परतो से गुजर कर भी आना पड़ता है।बिजली गिरने के सबसे ज्यादा चांस दोपहर के समय होते है।
साल 1939 में अमेरिका के ऊटा राज्य में बिज़ली गिरने से 835 भेड़ों की मौत हो गई थी। बिजली गिरने से जो लोग मारे जातेहै उनमें से 80 प्रतीशत पुरूष होते है।
अगर आसमानी बिज़ली गिरने से कोई इंसान घायल हो जाता है तो उसे ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है। बिज़ली से टिशूज डैमेज हो जाते है, नर्वस सिस्टम में खराबी आ जाती है, हार्ट अटैक भी आ सकता है और शरीर जा कोई अंग पैरालाइज़ भी हो सकता है।
माउंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है जिसकी समुंद्र तल से ऊँचाई 8,850 मीटर है। यह नेपाल में स्थित है।एवरेस्ट पर्वत को नेपाल के लोग सागरमाथा कहते है। यह नाम नेपाल के इतिहासकार बाबुराम आचार्य ने 1930 के दशक में रखा था। सागरमाथा का अर्थ होता है – स्वर्ग का शीर्ष।संस्कृत में एवरेस्ट पर्वत को देवगिरि और तिब्बत में सदियों से चोमोलंगमा अर्थात् पर्वतों की रानी के नाम से जाना जाता रहा है।एवरेस्ट पर्वत का अंग्रेज़ी नाम इंग्लैंड के जार्ज एवरेस्ट पर रखा गया है। वह एक वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1830 से 1843 की बीच भारत की ऊँची चोटियों का सर्वेक्षण किया था।माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई के बीच माना जाता है। इस दौरान बर्फ़ ताजा होती है, बारिश भी ना के बराबर होती है और अच्छी धूप की वजह से मौसम भी गुनगुना रहता है।
अब तक करीब 5000 लोग माऊंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचने में सफल रहे हैं, जिनमें एक 13 साल का लड़का, एक अंधा व्यक्ति और 73 साल की एक जापानी महिला बुजुर्ग भी शामिल है। सागरमाथा पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहयों को पहले 25,000 डॉलर (करीब 15.56 लाख रूपए) फीस देनी होती थी, पर वर्ष 2015 में नेपाली सरकार ने इसे कम करके 11,000 डॉलर (करीब 6.82 लाख रूपए) कर दिया।आपको जानकर हैरानी होगी कि 1974 के बाद साल 2015 ही ऐसी साल रहा जब कोई भी एवरेस्ट पर्वत के शिखर पर नही पहुँच पाया। इसका मुख्य कारण था अप्रैल 2015 में नेपाल में आना वाला भयानक भुकंप।एवरेस्ट पर्वत पर गए हर 100 में से 4 लोगों की मौत हुई है। कई तो ऐसे भी है जो पर्वत के शिखर पर पहुँचने के बाद नीचे उतरते समय अपनी जान गंवा बैठे।
माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचने के जुनुन को लेकर अब तक 200 से जयादा लोग अपनी जान गंवा चुके है। उनकी लाशे आज भी माऊंट एवरेस्ट पड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें इतनी ऊपर से नीचे लाना आसान काम नही है।
माऊंट एवरेस्ट पर पड़ी हुई लाशे बफ़्रीले माहौल के कारण जल्दी खत्म नही होती। कई बार तो चढ़ाई करने वाले इन लाशों पर पैर रखकर ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने का सफ़र तय करते है।एवरेस्ट पर सबसे ज्यादा मौते शिखर के करीब के हिस्से में होती है जिसे ‘डेथ जोन’ भी कहा जाता है। लोग अकसर चढ़ाई करने के समय गलती करके अपनी जान गंवा बैठते है।माऊंट एवरेस्ट पर जाने वाले लोग अपने साथ काफी सारा सामान और खाने-पीने की चीज़े लेकर जाते है, जिससे पर्वत पर काफी कूड़ा जमा हो जाता है। एक अनुसान के अनुसार माऊँट एवरेस्ट पर 50 टन कूड़ा है जो इसे दुनिया का सबसे गंदा पर्वत बनाता है।पानी का उबाल दर्जा 100°C होता है, पर माऊंट एवरेस्ट के शिखर पर यह महज 71°C रह जाता है।माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने के 18 अलग – अलग रास्ते हैं।
एवरेस्ट हर साल 2 सेंटीमीटर की दर से और ऊँचा हो रहा है|वर्ष 2011 में दो नेपाली व्यक्ति सिर्फ 48 मिनट में पैरागलाडिंग की सहायता से माऊंट एवरेस्ट के शिखर से नीचे उतर गए, जब कि चोटी से नीचे उतरने का औसतन समय 3 दिन है।एवरेस्ट पर्वत नेपाल के अप्रैल 2015 के भुकंप के कारण ढाई सेंटीमीटर नीचे धस गया था।गर्मियों में माऊंट एवरेस्ट के शिखर का औसतन तापमान -20°C होता है सर्दियों में -35°C.
एवरेस्ट पर्वत समुंद्र तल के हिसाब से दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है, पर अगर बात तल से लेकर शिखर तक की ऊँचाई की जाए तो हवाई द्वीप समूह का Mouna Kea (माऊना किया) पर्वत माऊँट एवरेस्ट से भी 1 किलोमीटर लंबा है। माऊना किया पर्वत का लगभग 6000 मीटर का हिस्सा समुंद्र में है और बाकी का समुंद्र के बाहर। समुंद्र तल से इसकी ऊँचाई 4207 मीटर है।
(आसमानी बिज़ली)
आसमानी बिजली X-ray किरणों से लैश होती है।बिजली गिरने से जुड़ा एक मिथक यह है कि यह जिस स्थान पर एक बार गिर जाए तो वो दुबारा वहां पर नही गिरती। पर असल में ऐसा नही है, किसी ऊँची जगह पर दुबारा बिज़ली गिरने के चांस उतने ही रहते है जितने पहली बार गिरने पर थे। उदाहरण के तौर पर अमेरिका की स्टैचु ऑफ़ लिबर्टी पर हर साल कई बार बिजली गिरती है।साल 1939 में अमेरिका के ऊटा राज्य में बिज़ली गिरने से 835 भेड़ों की मौत हो गई थी। बिजली गिरने से जो लोग मारे जातेहै उनमें से 80 प्रतीशत पुरूष होते है।
अगर आसमानी बिज़ली गिरने से कोई इंसान घायल हो जाता है तो उसे ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है। बिज़ली से टिशूज डैमेज हो जाते है, नर्वस सिस्टम में खराबी आ जाती है, हार्ट अटैक भी आ सकता है और शरीर जा कोई अंग पैरालाइज़ भी हो सकता है।
2.माउंट एवरेस्ट के रोचक तथ्य
माउंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है जिसकी समुंद्र तल से ऊँचाई 8,850 मीटर है। यह नेपाल में स्थित है।एवरेस्ट पर्वत को नेपाल के लोग सागरमाथा कहते है। यह नाम नेपाल के इतिहासकार बाबुराम आचार्य ने 1930 के दशक में रखा था। सागरमाथा का अर्थ होता है – स्वर्ग का शीर्ष।संस्कृत में एवरेस्ट पर्वत को देवगिरि और तिब्बत में सदियों से चोमोलंगमा अर्थात् पर्वतों की रानी के नाम से जाना जाता रहा है।एवरेस्ट पर्वत का अंग्रेज़ी नाम इंग्लैंड के जार्ज एवरेस्ट पर रखा गया है। वह एक वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1830 से 1843 की बीच भारत की ऊँची चोटियों का सर्वेक्षण किया था।माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई के बीच माना जाता है। इस दौरान बर्फ़ ताजा होती है, बारिश भी ना के बराबर होती है और अच्छी धूप की वजह से मौसम भी गुनगुना रहता है।
(माउंट एवरेस्ट)
अब तक करीब 5000 लोग माऊंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचने में सफल रहे हैं, जिनमें एक 13 साल का लड़का, एक अंधा व्यक्ति और 73 साल की एक जापानी महिला बुजुर्ग भी शामिल है। सागरमाथा पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहयों को पहले 25,000 डॉलर (करीब 15.56 लाख रूपए) फीस देनी होती थी, पर वर्ष 2015 में नेपाली सरकार ने इसे कम करके 11,000 डॉलर (करीब 6.82 लाख रूपए) कर दिया।आपको जानकर हैरानी होगी कि 1974 के बाद साल 2015 ही ऐसी साल रहा जब कोई भी एवरेस्ट पर्वत के शिखर पर नही पहुँच पाया। इसका मुख्य कारण था अप्रैल 2015 में नेपाल में आना वाला भयानक भुकंप।एवरेस्ट पर्वत पर गए हर 100 में से 4 लोगों की मौत हुई है। कई तो ऐसे भी है जो पर्वत के शिखर पर पहुँचने के बाद नीचे उतरते समय अपनी जान गंवा बैठे।
माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचने के जुनुन को लेकर अब तक 200 से जयादा लोग अपनी जान गंवा चुके है। उनकी लाशे आज भी माऊंट एवरेस्ट पड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें इतनी ऊपर से नीचे लाना आसान काम नही है।
माऊंट एवरेस्ट पर पड़ी हुई लाशे बफ़्रीले माहौल के कारण जल्दी खत्म नही होती। कई बार तो चढ़ाई करने वाले इन लाशों पर पैर रखकर ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने का सफ़र तय करते है।एवरेस्ट पर सबसे ज्यादा मौते शिखर के करीब के हिस्से में होती है जिसे ‘डेथ जोन’ भी कहा जाता है। लोग अकसर चढ़ाई करने के समय गलती करके अपनी जान गंवा बैठते है।माऊंट एवरेस्ट पर जाने वाले लोग अपने साथ काफी सारा सामान और खाने-पीने की चीज़े लेकर जाते है, जिससे पर्वत पर काफी कूड़ा जमा हो जाता है। एक अनुसान के अनुसार माऊँट एवरेस्ट पर 50 टन कूड़ा है जो इसे दुनिया का सबसे गंदा पर्वत बनाता है।पानी का उबाल दर्जा 100°C होता है, पर माऊंट एवरेस्ट के शिखर पर यह महज 71°C रह जाता है।माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने के 18 अलग – अलग रास्ते हैं।
(माउंट एवरेस्ट)
एवरेस्ट हर साल 2 सेंटीमीटर की दर से और ऊँचा हो रहा है|वर्ष 2011 में दो नेपाली व्यक्ति सिर्फ 48 मिनट में पैरागलाडिंग की सहायता से माऊंट एवरेस्ट के शिखर से नीचे उतर गए, जब कि चोटी से नीचे उतरने का औसतन समय 3 दिन है।एवरेस्ट पर्वत नेपाल के अप्रैल 2015 के भुकंप के कारण ढाई सेंटीमीटर नीचे धस गया था।गर्मियों में माऊंट एवरेस्ट के शिखर का औसतन तापमान -20°C होता है सर्दियों में -35°C.
एवरेस्ट पर्वत समुंद्र तल के हिसाब से दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है, पर अगर बात तल से लेकर शिखर तक की ऊँचाई की जाए तो हवाई द्वीप समूह का Mouna Kea (माऊना किया) पर्वत माऊँट एवरेस्ट से भी 1 किलोमीटर लंबा है। माऊना किया पर्वत का लगभग 6000 मीटर का हिस्सा समुंद्र में है और बाकी का समुंद्र के बाहर। समुंद्र तल से इसकी ऊँचाई 4207 मीटर है।
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